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from third eye...

Thursday 6 April 2017

****युवा क्रांति वर्ष 2016 - 2026****
**विचार क्रांति से युग निर्माण अभियान**

******लक्ष्य****
मानव में देवत्व का उदय और धरा पर स्वर्ग का अवतरण ****
जो कि सुनिश्चित है ********
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जीवन को संघर्ष इसीलिए कहा जाता है.... क्योंकि सद्गुणों की प्राप्ति के लिए प्रयास की निरंतरता आवश्यक होती है.... सकारात्मकता लगती है.....
और जिंदगी श़ानदार बनती है...... जहाँ वास्तविक सुख, शांति, संतोष और आनंद रूपी प्रतिफ़ल मिलते हैं.....
इन सब प्रयासों का आधार हमारी आस्था होती है....
क्योंकि सद्गुणों को ही मानवीय अंतःकरण में परमात्मा का अवतरण कहा जाता है......
हम ( I.Q.) से कितनी भी योग्यताएँ पा लें...
इससे अगली सीढ़ी ( E.Q.) है ....
और सर्वोच्च लक्ष्य ( S.Q.) .....
I.Q. means ...........intelligence अर्थात् information's जो हमें दुनियाँ के बारे में है.....और
E.Q & S.Q. means......... Tronsfamation's जो है मनुष्य के रूप में हमारे निज आस्तित्व की सही सही पहचान है.........
पहला पायदान हमारी भौतिक समृद्धि तक ही सीमित है... पर सिर्फ़ भौतिक समृद्धि पा लेना ही जीवन का लक्ष्य नहीं है..... यदि हम यहीं तक सोचते हैं जीवन को तो अभी हम ABCD तक ही आये हैं....और जिंदगी के लिए बहुत ही छोटा आकलन कर रहे हैं .......
हमें आगे बढ़ना चाहिए........ जीवन सीमित उद्देश्यों के लिए जीना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है.......
Low aim is a crime... एक अंग्रेजी कहावत भी है..
अतः
अपनी निज की पहचान के लिए भी हमें प्रयास करना चाहिए.....
हमने स्वयं को नाम,खानदान, पद,प्रतिष्ठा के संसारी आवरण में लपेट कर रखा है..... दुनियाँ ने हमें जैसा कहा वैसी ही हमने खुद के प्रति मान्यता स्थापित कर ली......
किसी श़ायर ने क्या खूब कहा है..... कि
जिस्म और रूह का रिश्ता भी क्या रिश़्ता है...
कि उम्र-ए-तमाम साथ रहे पर तार्रूफ़ नहीं हुआ....
बस ऐसे ही हम बिछड़े हुए हैं... स्वयं से......
अभी हम समर्थ हैं   कि इसके लिए भी प्रयास करें...
क्योंकि जितना ज्यादा भौतिक समृद्धि के लिए जूझेंगे..
जिंदगी का समय कम होता रहेगा....
जैसे श़रीर के लिए भोजन और पानी दोनो लेने पड़ते है... exactly... ये भी वैसी ही अनिवार्यता है....
वैसे भी भौतिक समृद्धि का कोईं अंत नहीं क्योंकि ये तृष्णा और माया का परिक्षेत्र है.... जो अनंत है और जो हमें यहाँ फँसाए हुए हैं.......
अतः अपना दृष्टिकोण सिर्फ़ नाशवान चीजों से ऊँचा उठाकर अविनाशी को जानने की ओर भी शिफ़्ट करें......
किसके पास कितना वक्त है... ये कौन जानता है.....
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ये सन्मति सबके पास माँ के गर्भ से ही डाउनलोड कर दी गई है..... बस हमें चिंतन और मनन करने के लिए कुछ समय निकालना है... प्रयास करके खोजना है और पाना है.....
सबकी सन्मति जाग्रत हो... ऐसी मंगल कामनाएँ.....
जय श्री राम जी की...... हरिः ॐ तत् सत्
ये सब कुछ अपनी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की झलक मात्र है......
जयतु देवभूमि मातृभूमि भारतवर्ष.......हम सब भारतवासी परम् सौभाग्यशाली हैं कि हमने उस धरा पर जन्म लिया है जिसके लिए देवता भी याचना करते हैं....
और हमें इसका गर्व है......

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