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सावधान !! युग बदल रहा है |

Sunday 16 April 2017

*****युवा क्रांति वर्ष 2016 - 2026*****
**विचार क्रांति से युग निर्माण अभियान**
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जय विचार क्रांति.........

शिक्षा में संस्कार हमारे देश की महती आवश्यकता है....
सारा संसार विचारों से संचालित हो रहा है....
सारी समस्याओं का मूल विचार ही तो होते हैं...
हर इंसान विचारों से ही तो निर्मित है........
आधुनिक विज्ञान का सारा तथाकथित विकास विचारों से ही तो हुआ है...... पर दुर्भाग्य से सुखी रहने की अपार सुविधाएँ मिलकर भी संसार को सुख शांति से दूर रखे हुए है.....और अशांति और बेचैनी बढ़ती जा रही है तो कहीं न कहीं ठहर कर ये सोचना होगा कि नकल के चक्कर में पड़कर ऐसा क्या छूट गया जो अत्यंत ज़रूरी था.....
यदि ठंडे दिमाग़ से विचार किया जाय तो पता चलेगा कि सिर्फ़ समृद्धि के बाहरी पक्ष पर ही फोकस किया गया और मनुष्य की आंतरिक समृद्धि को नकार दिया गया...

और इसी असंतुलन का परिणाम आज हमारे सामने है कि अधिकतर लोगो के पास बहुत कुछ बाहरी समृद्धि होने पर भी वे दरिद्रता की जिंदगी जी रहे हैं....
और आज भी अंधी दौड़ जारी है ...जाना कहाँ है किसी को कोईं पता नहीं.... यही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति सारे संसार में व्याप्त है......
ये समस्या विचार से शुरू हुई है तो इसका समाधान भी विचार से ही संभव होगा... ये तय है....
जो हो चुका उसे बदला नहीं जा सकता.... उस पर जितना भी सोचें वो व्यर्थ है........
अतः जो बेहतर किया जा सकता है उस पर चिंतन करने व योजना बद्ध होकर सामूहिक शक्ति से कार्य करने की ज़रूरत है....
अतः जो भी भावनाशील देशप्रेमी हैं उन्हें संगठित होकर सिर्फ़ देश के शुभ के लिए जुटना होगा....
पहले व्यक्ति फ़िर समाज, राष्ट्र और विश्व के कल्याण की भावना से कार्य करना होगा..... जैसे दृष्टि व्यापक होगी उतनी समस्याएँ कम होती जाएँगी.......
समस्त समस्याओं का मूल कारण संकीर्ण दृष्टि और ओछे विचार ही तो हैं.... कितना ही भटक लें हम यहीं आकर टिकना होगा......
इक्कीसवीं सदी का पूर्वार्द्ध इसी वैचारिक क्रांति का समय है जिसके माध्यम से आंतरिक और बाह्य समृद्धि का संतुलन होना सुनिश्चित है.....
अपनी भारतीय संस्कृति का उत्थान होकर रहेगा.....
दुनियाँ की कोईं ताकत इसे रोक नहीं सकती....
युग परिवर्तन अवश्यंभावी है.....
सावधान !! नया युग आ रहा है....
सबकी सन्मति जाग्रत होगी ही..... कोईं कितना भी विकृत चिंतन वाला हो... उसे सुधरना ही होगा.....
इसलिए समझदारी का तक़ाज़ा यही है कि दुनियाँ की अंधी दौड़ को समझा जाय और श्रेष्ठ चिंतन और सत्कर्म से जुड़कर युग निर्माण के लिए भगवान का हाथ बँटाया जाय.......यही मनुष्य होने की सार्थकता है.....

सबकी सन्मति जाग्रत करें भगवान.....
जय श्री राम जी की..... हरि ॐ तत् सत्

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