@@युवा क्रांति वर्ष 2016 - 2026@@
***विचार क्रांति...से ..युग निर्माण अभियान **
🚩🚩 सबका मंगल हो भगवान 🚩🚩
** सकारात्मकता से पूरी तरह से जुड़ों **
तो नकारात्मकता स्वतः ही खत्म हो जाएगी... जैसे प्रकाश की उपस्थिति में अंधकार स्वयमेव नष्ट हो जाता है |
हर एक मनुष्य के आस्तित्व के दो पक्ष हैं....
1...दृश्य
2.....और अदृश्य
मनुष्य का जीवन में सारा व्यवहार, आचरण और क्रियाकलाप जो बाहर दृश्य रूप में दिखते हैं..... दरअसल वो अदृश्य के धरातल से निकले विचारों, रूचियों और भावनाओं का प्रकटीकरण है.... इस मापदंड से हर एक इंसान की पहचान हो सकती है......
इसके साथ ही सोच के स्तर पर दो अनुभाग सकारात्मक और नकारात्मक होते हैं....
निरंतर नकारात्मक वातावरण समाज में बना रहने के कारण अधिकांशतः लोगों की मनःस्थिति नकारात्मकता से ग्रसित हो गई है...
अतः जहाँ कहीं भी सकारात्मकता की बात आई ....तो हम तुरंत अपनी लंबी आदत के अनुसार उसमें से नकारात्मकता खींच कर निकाल देते हैं....इसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति में हम ज्यादातर जकड़े हुए हैं.....
🌹🌹🌹🌹🌹अब इस स्थिति का वैज्ञानिक पहलू देखिए..🌹🌹🌹🌹🌹
युग निर्माण योजना मासिक पत्रिका माह मार्च 2016 पेज 12 & 13...से
निरंतर हताशा भरा चिंतन करने से शरीर में ग्लूकोकार्टिकॉयड नामक रसायन की वृद्धि होती है और मस्तिष्क का स्मृति--केन्द्र हिप्पोकेंपस सक्रिय हो जाता है |
इससे हमें उस समय की बातें याद आने लगती है, जो हमारे साथ वर्षों पहले घटी थीं |
चूँकि मन नकारात्मकता से भरा होता है इसलिए अतीत की अच्छी बातें तो याद आती नहीं, बल्कि हमें परेशान और आशंकित करने वाली बातें याद आने लगती हैं |
इससे मस्तिष्क की क्षमता कमज़ोर पड़ने लगती है | और हिप्पोकेंपस पर दबाव पड़ने से वह सिकुड़ने लगता है |
जब यह प्रभावित होता है तो सबसे बड़ी क्षति हमें यह उठानी पड़ती है कि नई स्मृतियों का संग्रहण बंद हो जाता है, अर्थात् हम वर्तमान की घटनाओं को घट जाने के बाद भूलने लगते हैं...
निरंतर नकारात्मक चिंतन एवं स्मृतियों से तनाव बढ़ता है और तनाव बढ़ने से शरीर में कार्टीसोल नामक हार्मोन का स्त्राव बढ़ जाता है | इससे हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली क्षमता घट जाती है और परिणामतः शरीर में संक्रामक रोग,
सर्दी--जुकाम का खतरा बढ़ जाता है |
यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो कईं प्रकार की गंभीर बीमारियाँ होने की संभावना बढ़ जाती है....आशंकित और डराने वाली बातों से शरीर में एंडोर्फिन हार्मोन का स्तर कम हो जाता है | इसकी कमी से हमारी दर्द सहने की क्षमता कम हो जाती है... अर्थात् हम सामान्य दर्द को भी झेल नहीं पाते |
अतः अतीत की कड़वाहट से बचने के लिए हमें वर्तमान में जीने का अभ्यास डालना चाहिए |
जो वर्तमान को सँभाल लेता है, वह अतीत की भूलों का सुधार करके भावी भविष्य को सुनहला और उज्जवल बना लेता है |
जीवन बड़ा बहुमूल्य और बेहद खूबसूरत है, उसे केवल वर्तमान के पलों से सजाया एवं सँभाला जा सकता है | अतः हमें अपनी समस्त ऊर्जा वर्तमान में ही खपानी चाहिए |
यही सुखी जीवन का रहस्य है |
अतः नकारात्मकता से चिंतन को मोड़कर सकारात्मकता की राह पकड़ना ही हमारी खुशहाली का एकमात्र संकल्प होना चाहिए....
सबका मंगल हो.... जय श्री राम जी की
.......हरिः ॐ तत् सत्.....
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