प्रतिभाओं का नया वर्ग उठेगा, युग मनीषा करेगी समस्याओं का समाधानः––
लेखकों, दार्शनिकों का अब एक नया वर्ग उठेगा। वह अपनी प्रतिभा के बलबूते एकाकी सोचने और एकाकी लिखने का प्रयत्न करेगा। उन्हें उद्देश्य में सहायता मिलेगी। मस्तिष्क के कपाट खुलते जाएँगे और उन्हें सूझ पड़ेगा कि इन्हीं दिनों क्या लिखने योग्य है और मात्र वही लिखा जाना है।
क्या बिना संपन्न लोगों की सहायता लिए, बिना वर्तमान पुस्तक विक्रेताओं की मोटे मुनाफे की माँग पूरी किए, ऐसा हो सकता है कि जनसाधारण का उपयोगी लोकसाहित्य लागतमूल्य पर छपने लगे और घर–घर तक पहुँचने लगे। हमार विश्वास है कि यह असंभव नहीं है। समय अपनी आवश्यकता पूरी कराने के लिए रास्ता निकालेगा और छाए हुए अँधेरे में किसी चमकने वाले सितारे का प्रकाश दृष्टिगोचर होगा।
दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों ही मुड़ेंगे। इन दोनों खदानों में से ऐसे नर–रत्न निकलेंगे जो उलझी हुई समस्याओं को सुलझाने में आश्चर्यजनक योगदान दे सकें। ऐसी परिस्थितियाँ विनिर्मित करने में हमारा योगदान होगा, भले ही परोक्ष होने के कारण लोग उसे अभी देख या समझ न सकें।
नवयुग यदि आएगा तो विचार–शोधन द्वारा ही, क्रांति होगी तो वह लहू और लोहे से नहीं विचारों की विचारों से काट द्वारा होगी, समाज का नवनिर्माण होगा तो वह सद्विचारोंकी प्रतिष्ठापना द्वारा ही संभव होगा। अभी तक जितनी मलिनता समाज में प्रविष्ट हुई है, वह बुद्धिमानों के माध्यम से ही हुई है। द्वेष–कलह, नस्लवाद–जातिवाद, व्यापक नर–संहार जैसे कार्यों में बुद्धिमानों ने ही अग्रणी भूमिका निभाई है। यदि वे सन्मार्गगामी होते, उनके अंतःकरण पवित्र होते, तप ऊर्जा का संबल उन्हें मिला होता तो उन्होंने विधेयात्मक चिंतन–प्रवाह को जन्म दिया होता, सत्साहित्य रचा होता, ऐसे आंदोलन चलाए होते।
.............................. अखण्ड ज्योति– जुलाई, 1984, पृष्ठ– 19, 20, 21
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